मुंशी प्रेमचंद: परिचय, हिंदी कहानी मे प्रेमचंद का योगदान

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मुंशी प्रेमचंद का परिचय 

मुंशी प्रेमचंद, हिंदी उर्दू साहित्य के एक महान साहित्यकार माने जाते है। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था, किंतु साहित्य की दुनिया में वे प्रेमचंद नाम से ही विख्यात है। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास एक गांव में हुआ था। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों व उपन्यासों के माध्यम से भारतीय समाज में व्याप्त सच्चाइयों को उजागर किया। 

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प्रेमचंद ने साहित्य की दुनिया में कदम रखने से पहले वे एक शिक्षक थे। प्रारंभ में उन्होंने उर्दू में लेखन किया, किंतु बाद में हिंदी में रचना की। उनकी पहली प्रकाशित रचना "असरार ए मआबिद" थी, जो की उर्दू में लिखी गई थी। 1910 में उनके द्वारा लिखित "सोजे वतन" ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई, क्योंकि इस रचना में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह का संदेश था। इसके बाद से प्रेमचंद ने अपनी रचना में प्रेमचंद नाम का लिखना प्रारंभ किया। 

प्रेमचंद की कहानियों व उपन्यासों में भारतीय समाज की वास्तविक छवि को मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। प्रेमचंद ने लगभग समाज के प्रत्येक वर्ग को अपने साहित्य मे स्थान दिया है, उनकी रचनाओं में गरीब, मजदूर, किसान या निम्न वर्ग हो सभी की वास्तविक स्थिति को प्रस्तुत किया है। उन्होंने गरीबी, शोषण, सामाजिक भेदभाव और अन्याय को बड़े बारीकी से अपनी रचना में स्थान दिया है। 

हिंदी कहानी के प्रेमचंद का योगदान 

हिंदी कहानी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद का योगदान अतुलनीय और अमूल्य है। उन्हें हिंदी साहित्य का शिखर पुरुष माना जाता है। प्रेमचंद ने अपनी साहित्यिक रचना के माध्यम से भारतीय समाज की जमीनी स्तर की सच्चाइयों को प्रकट किया है, साहित्य को समाज सुधार का एक मुख्य माध्यम माना जाता है, जिसे प्रेमचंद ने बहुत ही अच्छे से साबित किया। 

प्रेमचंद का सबसे बड़ा योगदान है, की उन्होंने हिंदी कथा साहित्य को आदर्शवाद से यथार्थवाद तक पहुंचने में अतुलनीय योगदान दिया। प्रेमचंद की रचना से पूर्व कथा रचना में राजा रानी की काल्पनिक कहानियों की वर्चस्व था, जो की आदर्शवाद की और झुका था, किंतु प्रेमचंद ने अपने लेखन में आम आदमी के जीवन, उसकी समस्या और कठिनाई को अपनी रचना में शामिल किया। ये कहानियां यथार्थवाद के अधिक नजदीक थी। "कफन," "ईदगाह," "पूस की रात," और "बड़े भाई साहब" जैसी कहानियों ने भारतीय समाज की जटिलताओं को सरल और मार्मिक शैली में प्रस्तुत किया है। 

प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानियां और उपन्यास आदर्शो, उपदेशों और मनोरंजन तक ही सीमित थी। जैसे की रानी केतकी की कहानी मनोरंजन को केंद्र में रखकर निर्मित की गई थी। जबकि प्रेमचंद ने इस परंपरा को सामाजिक यथर्तवाद से जोड़ा व इसे जीवन का प्रतिनिधित्व किया। हिंदी कहानी में किसान, ग्रामीण और वंचित वर्गों का साहित्य बनाया जो पहले केवल उच्च वर्गों तक सीमित था। किंतु प्रारंभ में प्रेमचंद भी आदर्शवाद से मुक्त नहीं हो सके थे, उनकी प्रारंभिक कहानी जैसे बड़े घर की बेटी आदर्शवाद से भरी है, किंतु प्रेमचंद अपने अंतिम समय में चरम यथार्थवाद तक पहुंच गए थे।

प्रेमचंद पूर्व कहानियों में विषय सीमित मात्रा में ही था, जैसे देश प्रेम, बाल सुधार, नारी सुधार आदि, किंतु प्रेमचंद ने इन विषय में समाज व्याप्त लगभग सभी समस्याओं को अपनी कहानी और उपन्यास में स्थान दिया है। तत्कालीन समाज की प्रेमचंद से अछूती न रही होगी जिस पर प्रेमचंद ने नही लिखा होगा। जैसे: दलितों का शोषण, गरीबी और भूख की समस्या, गरीब किसान की समस्या, वृद्धों की समस्या, अभाव से ग्रस्त बच्चों की समस्या, सयुक्त परिवार के टूटने की समस्या, बेमेल विवाह की समस्या आदि प्रचलित समस्यायों पर प्रेमचंद ने अपने साहित्य में गहनता की विचार कर इन पर कहानी और उपन्यास लिखा है। 

कहानियों और उपन्यास के शिल्प के स्तर पर भी प्रेमचंद से सबसे बड़ा परिवर्तन चरित्र योजना के स्तर पर किया है।प्रेमचंद पूर्व कथा रचना में पात्र या चरित्र एक आयामी, अस्वभाविक और अविश्वनीय होते थे, जो या तो अच्छे होते थे या बुरे जबकि कोई वक्ति केवल अच्छा या बुरा नही हो सकता है। प्रेमचंद की प्रारंभिक कहानियों में भी कुछ इसी प्रकार के चरित्र मिलते है किंतु अंतिम अवस्था उन्होंने कहानी कथा के चरित्रों को स्वाभाविक निर्मित किया, जिनमे अच्छे और बुरे गुण विद्यमान हो। इसी कारण से प्रेमचंद के अधिकांस पात्र सहज और स्वाभाविक प्रतीत होते है। 

प्रेमचंद ने अपने 20 वर्षों में जीवन काल के कुल 300 से अधिक कहानियां और 12 से अधिक उपन्यास लिखे है। कहांजाता है की प्रेमचंद ने केवल 20 वर्षों में हिंदी कहानी को 100 वर्षों जितना परिपक्व बना दिया, अन्यथा 100 से अधिक समय लगता। अतः यह कांटा कोई गलत नही है की प्रेमचंद में हिंदी कहानी की कर्मभूमि ही नही बदलीं बल्कि कायाकल्प भी कर दिया। 

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