उपन्यास: परिचय, इतिहास, काल विभाजन (upnyas: parichay, itihas, kaalkram)

स्वागत है आपके अपने ब्लॉग पर, जहाँ हम हिंदी साहित्य की अनगिनत परतों और गहराईयों का अन्वेषण करेंगे। हिंदी साहित्य, जिसमें बहुआयामी रचनाएँ, प्राचीन काव्य, और आधुनिक कहानियाँ शामिल हैं, भारतीय संस्कृति और समाज का एक अनमोल हिस्सा है। इस ब्लॉग में हम हिंदी उपन्यास का परिचय, इतिहास, विकासक्रम आदि का अध्ययन करेंगे।

उपन्यास: परिचय, इतिहास, काल विभाजन

परिचय 

  • उपन्यास आधुनिक काल की साहित्य रचना हैं , जिसका जन्म पश्चिमी सभ्यता में 18 वी शताब्दी में हुआ। उपन्यास शब्द दो शब्दों से बना है। उप + न्यास: "उप" उपसर्ग का अर्थ है, सामने या समीप और "न्यास" का अर्थ है धरोहर और रखना। इस आधार पर उपन्यास शब्द का अर्थ है, की लेखक ने अपने जीवन में जो कुछ देखा सुना या अनुभव किया, उसे अपने भाव विचार और कल्पना के माध्यम से प्रकट करना। उपन्यास में वर्णित घटना हमारे जीवन से प्राप्त की गई होती है, जिस कारण वह अधिक रुचिकर और पाठक को उपन्यास में पात्रों में अपनी छवि प्रतीत होती है। यानी वह साहित्यिक रचना जिसे पढ़कर लगे की इसमें वर्णित घटना यथार्थ को बहुत निकटता से पहचानते और उपस्थिति करने वाली विधा है। मुंशी प्रेमचंद के अनुसार उपन्यास है " में उपन्यास को मानव जीवन का चित्र समझता हूं। मानव जीवन पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोजना ही उपन्यास के मूल तत्व है।"

उपन्यास का इतिहास

  • उपन्यास का उदय सर्वप्रथम पश्चिमी देशों में हुआ तत्पश्चात भारत में इसका विकास हुआ। हिंदी उपन्यास का प्रारंभ भारतेंदु युग से माना जाता है। इस युग में हिंदी का पहला उपन्यास "परीक्षा गुरु" लाला श्रीनिवास दास द्वारा लिखा गया था, जो सन् 1882 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में दो मित्रों की कहानी का वर्णन किया गया है। जिसमे से एक मित्र कुछ कुसंगति के कारण अपना बहुत अधिक धन बर्बाद कर देता है। वहीं इसका दूसरा मित्र इस आदतों को त्यागने में उसकी सहायता करता है।

हिंदी उपन्यास का विकास

हिंदी उपन्यास के विकास को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है: प्रेमचंद पूर्व युग, प्रेमचंद युग और प्रेमचंद पश्चात युग

प्रेमचंद पूर्व युग: 

  • 1882 ई.से 1916 ई. तक के युग को हिंदी उपन्यास में प्रेमचंद पूर्व युग के नाम से जाना जाता है। यह काल हिंदी उपन्यास का प्रारंभिक काल था, मध्यकालीन आदर्शों और रोमानियत के तत्व धीरे धीरे लुप्त हो रहे थे वहीं यथार्थ के तत्वों की मात्रा अधिक हो रही थी। इस काल में मुख्यत सुधारवादी/नवजागरण, मनोरंजक और ऐतिहासिक उपन्यास लिखे जा रहे थे। 
  • सुधारवादी उपन्यास मुख्यत धर्म सुधार और नवजागरण आंदोलन से प्रेरित थे। जिनमें लिखने वाले भारतेंदु मंडल के लेखक शामिल थे। इस प्रकार के उपन्यास के "परीक्षा गुरु"(लाला श्रीनिवास), "भाग्यवती" (श्रद्धाराम किल्लोरी) आदि है। इस काल में मनोरंजक उपन्यास भी लिखे जा रहे थे। जिसमें जासूसी, तिलस्मी (जादुई) प्रकार के उपन्यास थे। देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित "चंद्रकांता" इसी प्रकार का उपन्यास है। इस काल में उपन्यास की एक प्रकार ऐतिहासिक उपन्यास था, इस प्रकार के उपन्यास में ऐतिहासिक विषयवस्तु केंद्र में थी। कुछ उपन्यासकार इतिहास का प्रयोग इतिहास के गौरवपूर्ण प्रसंगों का उपयोग करते थे वहीं कुछ इतिहास का प्रयोग स्त्री पुरुष रोमांस को दिखाने के लिए इतिहास को अपने उपन्यास में स्थान प्रदान करते थे। इस प्रकार के उपन्यास किशोरीलाल गोस्वामी द्वारा लिखित "तारा", "राजिया बेगम" है। 

प्रेमचंद युग:

  • हिंदी उपन्यास साहित्य में मुंशी प्रेमचंद का योगदान अतुलनीय है,हिंदी साहित्य इतिहास में प्रेमचंद का लेखन युगांतरकारी घटना है। प्रेमचंद पूर्व उपन्यास कुछ मात्रा में तो उपन्यास थे, किंतु उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से उन्हे उपन्यास नही माना जा सकता है। वे उपन्यास तत्कालीन समाज का वास्तविक चित्रण नही करते थे। प्रेमचंद का साहित्य लेखन काल केवल 20 वर्षों का है, किंतु इन्ही 20 वर्षों में प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को पूर्ण रूप से विकसित किया है, जिसे पश्चिमी सभ्यता को 100 वर्षों से अधिक का समय लगा था। प्रेमचंद के उपन्यास के तत्कालीन समाज का वास्तविक चित्रण होता है, पाठक उपन्यास को पढ़कर उस समय के वातावरण में रम जाता है और अपने आपको इसी वातावरण या चरित्र का एक हिस्सा समझने लगता है। प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास "सेवासदन", "निर्मला", "कायाकल्प", "रंगभूमि", "गबन" और "गोदान" है। गोदान प्रेमचंद द्वारा लिखित अंतिम उपन्यास है जो 1936 में प्रकाशित हुआ। गोदान संपूर्ण हिंदी साहित्य का महानतम उपन्यास है। इस उपन्यास के प्रेमचंद जी ने भारतीय समाज के तत्कालीन समय की समस्याओं को उजागर किया है। गोदान उपन्यास को भारतीय जीवन का महाकाव्य भी कहा जाता है। 

प्रेमचन्द पश्चात् युग/उपन्यास:

हिंदी उपन्यास इतिहास में प्रेमचंद पश्चात् युग अपने विकसित स्तर पर पहुंच गया। इस युग में अधिकतर लेखकों ने यथार्थवाद को अपने उपन्यास में शामिल किया। इस काल में उपन्यास लेखन की कुछ विशिष्ट शैलियां निर्मित हुई। 

  • मनोवैज्ञानिक उपन्यास: हिंदी के अनेक उपन्यकारों ने अपने उपन्यास लेखन में आधुनिक मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण के सिद्धांत का प्रयोग किया। मनोविज्ञान का प्रयोग प्रेमचंद द्वारा भी किया गया था किंतु इसका अधिकतम प्रयोग प्रेमचंद युग पश्चात् युग में देखा जाता है। इस प्रकार के उपन्यास बेहद विरल होते है, क्योंकि इसमें घटनाओं से अधिक आंतरिक चिंतन, मनन, मंथन, द्वंद और विश्लेषण होते है। इस शैली के उपन्यास जैनेंद्र द्वारा लिखित "त्यागपत्र", और अज्ञेय द्वारा लिखित "शेखर एक जीवनी" है। 
  • सामाजिक यथार्थवाद/प्रगतिवादी उपन्यास: सामाजिक यथार्थवाद प्रगतिवादी उपन्यास का प्रेमचंद द्वारा किया गया था। प्रेमचंद ने भी यथार्थवादी उपन्यास लिखे है किंतु इस प्रकार के उपन्यास अधिकतर प्रेमचंद पश्चात युग के ही लिखे गए। सामाजिक यथार्थवाद उपन्यास मार्क्सवादी विचारधारा को आधार बनाकर लिखे गए थे। यथार्थवादी उपन्यासों में समाज के सभी वर्गों को स्थान प्रदान किया गया है। वंचित वर्गों की समस्या पर बल दिया गया है और उनकी इस समस्या को समाज के सम्मुख प्रकट किया है। इस समस्याओं में मुख्यत गरीबी और शोषण को कथावस्तु बनाया है। इस प्रकार के उपन्यास यशपाल द्वारा लिखित "झूठा सच" और "दिव्या" है। 

Read more: हिन्दी कहानी: इतिहास, भारतीय समाज में कहानियों का विकास



एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने

نموذج الاتصال