हिंदी साहित्य का इतिहास और काल विभाजन (hindi Sahitya ka Itihas aur kaal vibhajan)

आज के इस ब्लॉग आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के इतिहास, काल विभाजन, नामकरण और इनकी समस्याओं व सीमाओं का अध्ययन करेंगे। काल विभाजन के आधार और विभाजन से संबंधित समस्याओं तथा सीमाओं का अध्ययन और नामकरण की समस्याओं को भी अध्ययन किया जायेगा। 

हिंदी साहित्य का इतिहास वैदिक काल से ही माना जाता है अर्थात् वैदिक काल की भाषा हिंदी ही थी, किंतु विभिन्न समय पर इस भाषा का मान परिवर्तित होता रहे है कभी 'वैदिक' कभी 'संस्कृत', 'प्राकृत', 'अपभ्रंश' और अब 'हिंदी'। 
हिंदी साहित्य का इतिहास और काल विभाजन

हिंदी साहित्य का काल विभाजन का प्रयास 

  • हिंदी साहित्य इतिहास लेखन में फ्रैंच विद्वान गार्सा-द-तासी का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। इस इतिहास में हिंदी और उर्दू के विभिन्न 730 से अधिक कवियों का वर्ण क्रमानुसार स्थान दिया। यह ग्रन्थ हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन का प्रथम प्रयास था। गार्सां द तासी के बाद हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन शिवसिंह सेंगर, जॉर्ज इब्राहिम ग्रियर्सन और मिश्र बंधु विनोद द्वारा किया गया। इन ग्रंथों को भी हिंदी साहित्य इतिहास लेखन का एक सार्थक कदम माना जा सकता है। 
  • इस दिशा में सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम आचार्य रामचंद्र शुक्ल का रहा है। उन्होंने इस दिशा में सुव्यवस्थित इतिहास लेखन की शुरुआत की। उनके "हिंदी साहित्य का इतिहास" नामक ग्रन्थ पहले "हिंदी शब्द सागर" की भूमिका में लिखा गया। 
  • हिंदी साहित्य इतिहास लेखन में अगला प्रमुख नाम आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का है। हिंदी साहित्य इतिहास में उनकी रचना "हिंदी साहित्य की भूमिका" एक श्रेष्ठ कृति है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य इतिहास को तीन ग्रंथों की रचना की; (1) हिंदी साहित्य की भूमिका, संस्करण 1940 ई. (2) हिंदी साहित्य का आदिकाल, 1952 ई. तथा (3) हिंदी साहित्य का उद्भव और विकास, 1955 ई.।

हिंदी साहित्य के इतिहास के पुनर्लेखन की समस्याएं 

साहित्य इतिहास के स्वरूप का उल्लेख करते हुए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवत्ति का स्थायी प्रतिबिम्ब होता है। जनता की चित्तवत्ति बहुत कुछ राजनीतिक, सामाजिक, सांप्रदायिक और धार्मिक परिस्थिति के अनुसार होती है। 
हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की पहली समस्या यह है कि हिंदी साहित्य का प्रारम्भ कब से माना जाए। शिवसिंह सेंगर, जॉर्ज ग्रियर्सन और मिश्र बंधुओं ने हिंदी साहित्य का प्रारम्भ सातवीं शताब्दी से माना है। जबकि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसका प्रारंभ दसवीं शताब्दी से स्वीकार किया है। कुछ विद्वानों ने इसे बारहवीं शताब्दी से मान है।

हिंदी साहित्य का काल विभाजन 

शिवसिंह सेंगर ने शिवसिंह सरोज में 800 से अधिक कवियों की कविताओं का संकलन किया है। सेंगर ने हिंदी साहित्य के इतिहास को शताब्दियों के आधार पर विभाजित किया है, जिसे हिंदी साहित्य में विशेष महत्व प्राप्त नहीं है। डॉ ग्रियर्सन ने अपनी रचना "दी मॉर्डन वर्नाकुल लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान" में काल विभाजन करते हुए हिंदी साहित्य को 12 भागों में विभाजित किया। तत्पश्चात् अन्य प्रमुख नाम मिश्र बंधुओं का है, इनके हिंदी साहित्य इतिहास में भी अनेक विसंगतियां मिलती है, जैसे पूरे वर्ग समूह में कोई निश्चित आधार नहीं है। 
प्रारंभिक पुस्तकों में काल विभाजन संबंधी तथ्यों का अभाव रहा है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन चार भागों में किया है। 
  1. आदिकाल (संवत् 1050 से 1375)
  2. भक्तिकाल (संवत् 1375 से 1700)
  3. रीतिकाल (संवत् 1700 से 1900)
  4. आधुनिक काल (संवत् 1900 से वर्तमान)
  1. आदिकाल: हिंदी साहित्य का आदिकाल जिसे वीरगाथा काल भी कहा जाता है। यह हिंदी साहित्य के इतिहास का प्रारंभिक चरण है। जिसका समय 10 वीं शताब्दी से 14 वीं शताब्दी के मध्य माना जाता है। इस काल में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के साथ धीरे धीरे मुक्त हिंदी भी विकसित हो रही थी। 
  2. भक्तिकाल: भक्तिकाल की समयावधि 1375 ई. से 1700 ई. तक मानी जाती है। इस काल में हिंदी के साथ साथ अवधी और ब्रजभाषा में भी साहित्यिक रचना की जाती थी। निर्गुण भक्तिधार और सगुण भक्तिधार दो मुख्य धारा इस काल में विकसित थी। पद्मावत और रामचरितमानस जैसे महाकाव्य भी इसी काल की रचना है। 
  3. रीतिकाल: आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार रीतिकाल 1700 ई. से 1900 ई. तक माना जाता है। इस काल में शृंगार वर्णन, अलंकार प्रयोग, छंद पर अधिक बल दिया जाता था। इस काल की मुख्य रूप से ब्रजभाषा का प्रयोग किया जाता था। इस काल की अन्य विशेषताएं ऐहलोकिकता, श्रृंगारिकता, नायिका भेद आदि रही है। 
  4. आधुनिक काल: हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का प्रारंभ 1900 ई. में हुआ जो वर्तमान तक जारी है। इस काल खड़ी बोली का विकास हुआ। इस काल छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग, नई कविता युग और साठोत्तरी कविता के नाम से भी जाना जाता है। इस काल की मुख्य विशेषताएं नवीनता, बौद्धिकता, देश प्रेम, प्रतीकात्मकता और उपमाओं की कविता रही है।

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