हिंदी साहित्य में महिला लेखक और महिला विमर्श (Hindi Sahitya, mahila lekhak aur mahila vimarsh)

इस ब्लॉग आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य की कुछ प्रसिद्ध महिला लेखकों की महिला विमर्श के बारे में जानेंगे। हिंदी साहित्य में महिलाओं की स्थिति, सामाजिक और आर्थिक स्थिति महिला लेखकों ने किस प्रकार प्रकट की। इन महिला लेखकों के महादेवी वर्मा, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती और अमृता प्रीतम शामिल है। इन लेखिकाओं ने समाज के व्याप्त महिलाओं की स्थिति को अपने लेखन के माध्यम से समाज के सामने प्रकट किया।

हिंदी साहित्य में महिला लेखक और महिला विमर्श (Hindi Sahitya, mahila lekhak aur mahila vimarsh)
हिंदी साहित्य में महिला लेखकों ने अपनी रचना से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महिलाओं ने अपने लेखन के माध्यम से न केवल समाज को सच्चाई दिखाई बल्कि महिला के मनोविज्ञान और अनुभवों को गहराई से समाज के सामने प्रकट किया है। प्रारंभिक काल से अब तक अनेकों महिलाओं ने कविताएं लिखी है, किंतु इनमें से अधिकांश रचनाएं अज्ञात रही है। 
आधुनिक काल में महिलाओं ने हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान अपनी रचनाएं जैसे उपन्यास, कहानियां, कविताएं, नाटक आदि रचनाओं में दिया है। महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, अमृता प्रीतम जैसी लेखिकाओं ने अपनी लेखन कौशल से पाठकों को भावुक किया है। 

महिला लेखक

महादेवी वर्मा 

महिला व पुरुष सामाजिक संरचना की दो इकाइयां है, जो एक दूसरे के पूरक भी है एक दूसरे से पृथक भी। दोनों ही सामाजिक रूप से स्वतंत्र और स्वायत है। किंतु सामाजिक विकास और संरचना की सदियों पुरानी प्रक्रिया के कारण महिला को इतना स्वायत व स्वतंत्र पूर्ण जीवन नहीं मिला जितना कि एक पुरुष को मिला है। आज महिलाएं भ्रूण हत्या और दहेज हत्या का शिकार हो रही है। 
महिलाओं ने अपने लेखन के माध्यम से महिलाओं के मुद्दों को समाज के समक्ष उजागर किया है, महिलाओं ने नारी के मुद्दों को प्राथमिकता दी है। उन्होंने अपने साहित्य में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को बड़े स्तर व प्रभावी ढंग से उजागर किया है। महिला लेखक ने अपने लेखन के माध्यम से विभिन्न पहलुओं को समाज के सामने रखा है। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों, रूढ़िवादियों और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई है। महिला लेखन के माध्यम से महिलाओं के सशक्त बनाया है। उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्र सोचने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। आज देश की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है किंतु देश विकास, नीति निर्माण के महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से कम है। 
आधुनिक हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श या स्त्री चेतना आदि प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करने वाली प्रथम महिला लेखिका महादेवी वर्मा है, जिन्होंने महिला विमर्श पर लिखा है। 

"मैं नारी भरी दु:ख की बदली
विस्तृत नभ का कोई कोना 
मेरा न कभी अपना होना 
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी थी कल, मिट आज चली।"
 

अमृता प्रीतम 

अमृता प्रीतम एक प्रसिद्द भारतीय कवयित्री और लेखिका थी। वे पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री मानी जाती है। अमृता प्रीतम के लेखन में भावनात्मक गहराई और सामाजिक चेतना की विशेषता थी। उनके लेखन में महिलाओं के मुद्दों पर प्रकाश डाला और नारीवाद को बढ़वा दिया। अमृता प्रीतम साहित्य के आकाश में वह चमकता सितारा है, जिसकी रोशनी ने महिलाओं के उन मुद्दों पर प्रकाश डाला जिन्हें अंधेरे में धकेल दिया जाता है। उनकी कलम ने तत्कालीन समय की महिलाओं की स्थिति को कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। 

"इस जन्म में कई बार लगा कि
औरत होना गुनाह है
लेकिन यही गुनाह
मैं फिर से करना चाहूंगी
एक शर्त के साथ,
की ख़ुदा को भी अगले जन्म में भी, 
मेरे हाथ की क़लम देनी होगी."

कृष्णा सोबती 

कृष्णा सोबती एक मशहूर हिंदी साहित्यकार थी। उन्होंने अपने साहित्य में महिलाओं की विचारधारा, संघर्ष और चुनौतियों को दिखाया है। उनके उपन्यासों में महिलाओं की आंतरिक बुनावट और आंतरिक विचारधारा को दिखाया गया है।  कृष्णा सोबती ने महिलाओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से देवी या दासी की भूमिकाओं से बाहर निकालकर व्यक्ति के रूप में प्रकट किया है। 
कृष्णा सोबती ने अपने लेखन में पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती दी है। उन्होंने महिला पात्रों को साहसिक, स्पष्टवादी और संघर्षवादी बनाया। उनके लेखन में नारी के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है, जहाँ महिलाएं अपने फैसले खुद लेती है और जिम्मेदारियों को भी समझती है। 

मन्नू भंडारी 

मन्नू भंडारी ने अपनी रचनाओं में महिला विमर्श को सशक्त रूप से प्रस्तुत करने के लिए जाना जाता है। उनकी कहानियों और उपन्यासों में महिलाओं की सामाजिक स्थिति, समस्याओं और संघर्ष का गहन चित्रण मिलता है। उनके साहित्य में महिलाओं के चरित्रों को स्वतंत्र और अलग पहचान की बात को प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने सवाल उठाया कि समाज में महिलाओं को केवल पत्नी, माँ या बेटी के रूप में ही क्यों दिखाया जाता है ? उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर बल क्यों नहीं दिया जाता है। 
मन्नू भंडारी के लेखन में समकालीन समाज के सवाल और महिलाओं की समस्याएं दिखती है। वे एक प्रगतिशील और संतुलित दृष्टिकोण रखती है, वे महिला की स्वतंत्रता की वकालत करती है, लेकिन समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियां को भी नजरअंदाज नहीं करती। 

हिंदी साहित्य में महिला लेखकों ने न केवल साहित्यिक विविधता और गहराई प्रदान की, बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका और उनकी पहचान को भी सशक्त बनाया। उनके लेखन ने साहित्य में स्त्री विमर्श को एक नया दृष्टिकोण और पहचान दी है। 

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